Bachpan
बचपन
हरे निले कंचोसे भरापूरा संदूक
बुल्बुले उग्ल्ती वो विलयती बंदूक
वो बाइस्कोप का बक्सा,
वो मिट्टीके नकाब
जालीवाले पत्ते पीपलके,
कुछ कागज के गुलाब
वो राखीका रेशम ,
वो चाभी वाली मैना
वो आधी अधुरीसी शतरंज की सेना
वो साइकिल की घंटी
वो मुन्नी की गुडिया
मेले मे जीती वो रेडीयम की घडियां…
कौडीयोंके दाम
छिनता गया हर साल
मुझसे मेरा बचपन वो..
और लोग पुछ्तें हैं
“तुम्हे कबाडीसे इतनी नफरत क्यों है?”
गुरु ठाकुर
Childhood stood right in front of me as you took me through one step at a time and then that punch in the last line spoke volumes. Splendid 😍
निशब्द