Kya Voh Najm Thi
क्या वो नज्म थी
क्या वो नज्म थी
जो तेरी सूरत लिए
उस रोज मिली थी मुझको?
या यह तुम हो
जिसे उतार रहा हूँ कागज पर
इक नज्म की सूरत में
शामसे सारे अहसास
उलझनों से घिरे है
कैसे बताए इनको
दोनो एक ही लकीर
के सिरे है
चीरती हुई आती है
कोहरेकी चद्दरको
और फैल जाती है
मेरे ठिठुरते बदनपर..
सहलाकर मेरे एहसासोंको
सासोंमें समा जाती है..
इस कच्ची धूपने तेरी
शागिर्दी कबूल की है शायद.
– गुरु ठाकुर
क्या वो नज्म थी – Hindi Kavita by Guru Thakur
I always wonder how does a poet’s mind works. When I come across such heartwarming poems I can’t help but think how can anyone love anybody else so much that they weave it into words to make it look like a pristine necklace of pearls. When I read Kabiguru Tagore’s poem penned for his love interest I felt the same feelings fill my heart!
ह्या कवितेच्या व्हिडिओ मध्ये तुझ्या आवाजसोबत तुझा facial expression खूप भावलं, तुझ्या बहुआयामी व्यक्तिमत्त्वातील
“अभिनेता” हा पैलू उठून दिसतोय त्यात
आज शब्द वाचले , पण तुझ्या आवाजात ऐकण्याची मजा वेगळीच. कोहरा ,तुझ्या आवाजात ऐकायची आहे लवकर रेकॉर्ड कर प्लीज
जब कविता दिलसे कागदपर उतर आती है, तो वह पढनेवालेके दिलमें अपने कदमोंके निशान छोड जाती है ! उठ चुके हैं इसके निशान ! जियो !
हे गुरूच्या आवाजात ऐकायचं असेल तर खालिल लिंकवर क्लिक करा….
https://www.guruthakur.in/recitals/
-गिरीश
नक्की