Kyo Kataa Woh
क्यो कटा वो? Dedicated to Dr. N. Dabholkar
सुकून की सांस ली थी
जिसकी छांवमे कभी
उस विशाल बरगद को
अचानक इक रोज सुबह
कटा देखकर
कई दिल दहल गये
उसकी शाखाओं पर बसे
उम्मीदोके अनगिनत
घौसलोंकी चीखें गुंजती रही हवाओंमे
साथ ही ईक सवाल उछलता रहा
क्यो कटा वो?
वजह तो बस वो जानते थे
जिनके हाथमे कुल्हाडी थी
और वोह जिनके बगलमे थी छुरी
बेहद खुश थे की ‘न रहेगा बांस
न बजेगी बासुरी’
काटनेवालोंको ये अहसास न था
बरगद बांस न था
ऊसकी सैकडो गहरी जड़ोंने
अपना करिश्मा दिखाया है
आज एक साल बाद
हर एक घायल जडसे
ईक नया बरगद उभर आया है.
-गुरु ठाकुर
Dedicated to Dr. Narendra Dabholkar. .. – Hindi Kavita
सर काही कविता वाचण्यापेक्षा ऐकल्यावर मानत जास्त खोलपर्यंत भावतात. एकंदरीत सगळ्याच नकारात्मक परिस्थितीत धीर देणार्या ज्या कविता आहेत, ही त्यातली एक आहे… So requested to you, Please if possible make an audio or a video of this. तुमच्या आवाजात ऐकायला आवडेल.. Thank you.
बहोत खूब ! याद आया
मरते बिस्मिल रौशन लहरी अश्फाक अत्याचारसे
होंगे पैदा सैंकडो उनके रुधिर की धारसे